Sunday, June 24, 2007

एक अजनबी जो मुझे प्यारा है

मीला कल एक अजनबी से
जो लगा दिल को अपना सा

उसका चेहरा था एक महताब
जिस्में जला मेरा वजूद सारा

उनके आंखों में डूब के
भूला दिया गम जीवन भर का

की बातें चंद, थी मुलाकात दो घङी की
फिर भी लगा की है बन्धन अपना सदियों का

ना जाने क्यों है हर पल ख़याल उनका
जानता हूँ वो था ख्वाब पल दो पल का

अब तो बस गए हैं वो ख्यालों में
बस आस है पल पल उनके आने का

अब सुकून नहीं आयेगा दिल को उनसे मिले बिना
लेकिन उन्हें बुलाये भी तो देके वास्ता कीस रिश्ते का

था वो अजनबी मगर लगा दिल को प्यारा
पहले था बेगाना सा, लेकिन अब लगे अपना सा

Saturday, June 23, 2007

प्यारे (from दीपक)

तुम मुझको इतने प्यारे हो

तुम इतने मुझको प्यारे हो

मेरा दिल है एक गुलिस्तां सा

तुम फूल हो, तुम बहारें हो

तुम मुझको इतने प्यारे हो

तुम इतने मुझको प्यारे हो


मेरी साँसों में एक समुन्दर है

तुम उसमें बहते धारे हो

तुम मुझको इतने प्यारे हो

तुम इतने मुझको प्यारे हो


तुम फलक सी मुझ पर छाई हो

तुम चांद हो , तुम सितारे हो

तुम मुझको इतने प्यारे हो

तुम इतने मुझको प्यारे हो


मेरी आंखों में तेरा चेहरा है

मेरी आंखों के तुम नज़ारे हो

तुम मुझको इतने प्यारे हो

तुम इतने मुझको प्यारे हो


तेरी धड़कन सुन में लेता हूँ

चाहे बीच कितनी दीवारें हो

तुम मुझको इतने प्यारे हो

तुम इतने मुझको प्यारे हो


जी उठेंगे हम तो मर कर भी

जो कह दो तुम हमारे हो

तुम मुझको इतने प्यारे हो

तुम इतने मुझको प्यारे हो

Tuesday, June 05, 2007

कहीँ ये प्यार तो नहीं.......

पिछले कुछ दिनों से मेरे,
हालात ही कुछ और हैं
भीड़ में तनहा सा रहूँ,
तनहाई लगती शोर है

कहीँ ये प्यार तो नहीं.........

अब रोज़ सवेरे आंखों में,
धुंधली सी इक तस्वीर दिखे
और उस तस्वीर में अब कोई
कुछ हलके-हलके रंग भरे

और शाम कि आहट सुनते ही
दिल को कुछ होने लगता है
कभी यूं ही हंसने लगता है
कभी यूं ही रोने लगता है

इक अनजाने से चेहरे को
वो खुद में संजोने लगता है
कुछ बीज अधूरे ख़्वाबों के
दिल फिर से बोने लगता है


और रात का आलम ना पूछो
इक सन्नाटा सा रहता है
कि एक अजब चाहत का दिया
कुछ जलता-बुझता रहता है

और रोज़ अँधेरी रातों में
ये दिल आवाजें करता है
कुछ बातें किसी से कहता है
कुछ बातें सुनता रहता है

कहीँ ये प्यार तो नहीं..................

Monday, June 04, 2007

प्रशांत की तरफ से..................

उस एहसास को क्या नाम दूँ..
जो तस्सबुर से तेरे आता है
और दिल को मेरे छू जाता है
लाखों कि भीड़ में भी
तनहाई का एहसास दिलाता है
उस एहसास को क्या नाम दूँ

उन नजरो को क्या नाम दूँ
जो अपने आप को मुझसे चुराती हैं
हर उठती चिलमन के साथ
कत्ल-ए- आम मचाती हैं
गर गलती से कभी मिल जाये मेरी नजरो से वो नज़रे
तो हया से झुक जाती हैं
उन नजरो को क्या नाम दूँ

Thursday, May 03, 2007

हाल क्या है आपका

मेरे दोस्त हमेशा पूछते हैं "क्या हाल है?"

हमारा जबाब हमेशा एक होता रहा है "अरे कुछ खास नहीं"

फिर भी कुछ तो बताओ ... नया पुराना ...कुछ भी ...

उनके लिए खास ...


अरे कुछ खास नहीं है
लाइफ में सब वैसा ही है
कुछ नया नहीं है
वही चीनी कम पानी ज्यादा वाली चाय
वही अखबार और वही खबर बार बार
आज सौ मरे एक दुर्घटना में , बहु को जिंदा जला दिया परिवार वालों ने
आज बैंगलोर में मूसल्धार बारिश हुई , और राजस्थान
में दो लोग प्यासे मरे
आन्ध्रा में अकाल है, और बिहार में सौ बाढ में मरे

आज किसी की शादी है, कल उसका दिवोर्स होने वाला है
मुहल्ले में आज कल कुत्ते रात में बहुत भौंकते है ,
और पॉवर कट ने ले ली है जान , रात की तनहाई में मच्छरों का साथ है

कल शर्माजी की बेटी वर्मा साहेब के लङके के साथ भाग गयी
आज परोस में मेहता साहब के माँ की बरसी है
राव जी की बीबी का लफ़ङा प़साद के छोरे के साथ है
राठोङ जी का उनकी नौकरानी के साथ चक्कर है


आस्ट्रेलिया ने वर्ल्ड कप जीत लिया है
इंडिया बुरी तरीके से बंगलादेश से हारी है

उसका गम अभी तक भरी है
इधर नडाल ने मचायी धूम है , फेडरर का बुरा हाल है

अभी भी अमेरिका की दादागिरी है
इंडिया में बहुत सारी विकास बाकी है
होम लोन अब बहुत मंहगी है
घर लेना भी अब एक समस्या भारी है

चाय भी ठण्डी हो गयी है, खबर भी अब बासी हो गयी है
हाल अब भी बेहाल है , फिर भी जिन्दगी खुशहाल है


क्या नाम दूं

उस हवा को क्या नाम दूं
जो तेरी गलियों से आती हैं
और खुशबु तेरी लाती है
आने का अपना मकसद बस
दिल का पैगाम बताती है
उस हवा को क्या नाम दूं

उस फिजा को क्या नाम दूं
जहाँ महक तुम्हारे आँचल की
मुझको मदहोश बनाती है
जहाँ सब कलियाँ अपने अन्दर
सूरत तेरी दिखलाती हैं
उस फिजा को क्या नाम दूं

उस राह को क्या नाम दूं
जो तेरे घर से निकलती है
और मेरे घर को आती है
जो दूरी का एहसास मिटा के
तुझे पास मेरे ले आती है
उस राह को क्या नाम दूं

इस रिश्ते को क्या नाम दूं
कि जिसमें बंध कर हम दोनो
हर सुख दुःख को संग सहते हैं
कहने को हैं दो जिस्म मगर
इक जान कि तरह हम रहते हैं
इस रिश्ते को क्या नाम दूं